मानव जाति की उत्पत्ति एवं विकास के सम्बन्ध में डार्विन की प्रसिद्ध पुस्तक प्राणी विकास के सिद्धान्त (860) पाश्चात्य जगत् की प्रथम पुस्तक थी ।
इसके पूर्व मानव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई वैज्ञानिक विचार प्रस्तुत नहीं किया जा सकां था। यद्यपि भारतीय वेदों एवं पुराणों में मानव के विकास-क़रम को 2 से 7 हजार वर्ष पूर्व में ही समझा दिय गया था।
डार्विन ने मानव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जातिवर्ग के विकास को स्पष्ट करते हुए निम्न तीन सिद्धान्त प्रतिपादित किये।
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मानव विकास |
(Ba first Sem) पृथ्वी पर मांनव-विकास पर टिप्पणी का वर्णन कीजिए
1.रूपान्तरण का सिद्धान्त--
प्रत्येक तत्त्व का रूप अनेक दिशाओं में बदलता रहताहै। रूपान्तर की अनेक दिशाएँ होने के कारण परिवर्तित रूप भी अनेक प्रकार के होते हैं।
(2.अनुकूलन का सिद्धान्त-
इस प्रक्रिया के कुछ रूपों में अपने पर्यावरण में रह सकने की क्षमता अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक होती है।
(3) प्राकृतिक चुनाव-
जिन जीवों में अनुकूलन को क्षमता होती है वे जीवित रहते हैं शेष नष्ट हो जाते हैं।
जिनमें जीवन-शक्ति अधिक रहती है, प्रकृति उन्हीं को जीवित रखती कई बार प्रकृति में एकाएक परिवर्तन होने से जैव जगत का क्रम बर्दल जाता है।
इसे वेदों में परमेश्वर की हुँकार' कहा गया है।
मानव विकास की व्याख्या कीजिए आधुनिक खोजों के अनुसार संसार में मानव का उद्भव अधिक से अधिक 20 लाख वर्ष पहले हुआ। इस प्रकार इस पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व प्लीस्टोसीन भौमिकीय कल्प के प्रारभ से है।
तथापि प्रारम्भिक मानव जिसे आस्ट्रेलोपिथेकस कहते हैं, आज के मनुष्य सर्वथा भिन्न था। वह मनुष्य की आदिम स्वरूप मात्र था। उसका कद लगभग 4 फुट तथा वजन 25-30 किग्रा था
अन्य पशुओं से वह मात्र इस अर्थ में भिन्न था कि उसमें खड़े होकर चलने की प्रवृत्ति थी और इस प्रकार का चौपाया अर्थात् पशु नहीं रहा।
कालक्रम में आस्ट्रेलेपिथेकस विलुप्त हो गया, परन्तु उससे अधिक विकसित मानव-सदृश जीव होमोहैबलिस का उद्भव लगभग साढ़े सत्रह लाख वर्ष पूर्व हुआ.
होमोहैबलिस मानव सदृश्य जीव होमो हैबिलिस का उद्भव लगभग साडे 1700000 वर्ष पूर्व हुआ होमहैबिलिस के अवशेष अवशेष भी ओल्दूबई गर्ज में ही 1960 में पाए गए।
होमो हैबिलिस काकड़ ऑस्ट्रेलोपीथिकस की अपेक्षा ऊंचा तथा वजन 40 से 45 किलोग्राम आका गया उसकी मस्तिक सुधार था भी 675 से 680 घन सेंटीमीटर थी. मानव विकास की कहानी
होमो हैबिलिस भविष्य में उपयोग हेतु पत्थर लकड़ी तथा हड्डियों के औजार करता था यही तत्व उसे मानव जीव के निकट मानने को बात करता है।
प्रारंभिक स्वरूप लगभग 500000 पूर्व प्रकट हुआ जो संभवत होमो हैबिलिस का परी श्री कृष्ण परिशिष्ट रूप था इसे होमो इरेक्टस होमो इरेक्टस इलेक्टर्स अर्थात सीधा खड़ा होकर चलने वाला मानव सदस्य सदृश्य जीव कहां गया.
इसका कद 5 फुट 2 इंच की धारा समानता 950 घन सेमी और कुछ की 300 घन सेमी. तक थी।
छोटा चेहरा, चपरी, नाक तथा ललाट इसकी शारीरिक विशिष्टताएँ थीं । होमो इरेक्टस के अवशेष जावा के रीनील नामक स्थान में सर्वप्रथम 890 ई. में मिले।
मानव फिल्म विकास की अगली कड़ी में होमोसेपियन नियणडर थालीश का पादुर भाव लगभग 100000 वर्ष पहले हुआ।
जो शारीरिक बनावट एवं मस्तिष्क की धारिता में आधुनिक मानव से मिलता जुलता था परंतु उसकी प्राविधि की पत्थर लकड़ी एवं हड्डियों के विभिन्न प्रकार के औजारों की निर्माण तक सीमित थी
तथापि यह मानव भाषा द्वारा अपने अनुभवों का अन्य सदस्यों से आदान-प्रदान कर सकता था। धरती पर मानव की उत्पति कैसे हुई?
मध्य यूरोप एशिया के विस्तृत क्षेत्र पर गुफाओं में उसके निवास स्थल के अवशेष बिखरे मिलते हैं जानवरों की खाल का प्रयोग के कारण वह उत्तर में वहां तक फैल गया था जहां पर जहां पर वर्ष भर बर्फ नहीं जमती।
लगभग 40,000 वर्ष पूर्व मानव का वाह-वाह स्वरूप भरा जो दिखाई पड़ता है इसे जीव वैज्ञानिक होमोसेपियंस कहते हैं।
फिर भी आज से 11000 वर्ष पहले तक मानव अपनी आजीविका के लिए वनों के कंद मूल फल समुद्र एवं जलाशयों से मत्स्य तथा जानवरों की शिकार पर ही निर्भर रहता था
उसके हथियार पत्रों के विभिन्न प्रकार के औजारों से लेकर विश्व बुझे तीर तक थे।
अतः वह अपनी बुद्धि के अनुसार प्राकृतिक वातावरण में 16 प्रकार की पदार्थों को एकत्रित करके अब जीवन यापन करता था। आज से 9000 वर्ष पूर्व नवपाषाण काल के प्रारंभ से जब मानव में पशुओं जैसे कुत्ते, घोड़े ,गाय ,बैल आदि को फालतू बना लिया तथा चावल,गेहूं, गन्ने जैसी फसलों को उगाना सीख गया ।
मनुष्य विभिन्न क्षेत्रों में बसने लगा तथा उसमें क्षेत्र विशेष से अपनत्व का विरोध होने लगा तभी से विभिन्न क्षेत्रों में वातावरण के अनुसार समायोजन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। परिणामस्वरूप क्षेत्र विशेष में विशिष्ट जीवन पद्धति का प्रारूप उभरने लगा।
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